India News (इंडिया न्यूज़), Chandrayaan-3, भोपाल: कल 23 अगस्त को 6:04 पर भारत चांद के दक्षिणी धुव्र पर पहुंचने वाला सबसे पहला देश बन गया है। जिसका सबसे बड़ा श्रेय ISRO के वैज्ञानिकों को जाता है। जिनकी मेहनत रंग ले आई है। भारतीय वैज्ञानिक के इस अजूबे और भारत की इस बड़ी सफलता में मध्य प्रदेश के 4 हीरो का भी अहम योगदान है।
अलग-अलग जिलों से चारों वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष कार्यक्रम ‘मून मिशन’ में अहम रोल निभाया है और मध्य प्रदेश के साथ-साथ देश को का नाम रोशान किया है।
साइंटिस्ट महेंद्र कुमार ठाकरे बालाघाट जिले के रहने वाले है। जो चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट मैनेजर हैं। उन्होंने चंद्रयान-1 और मंगलयान सहित कई अंतरिक्ष मिशनों पर काम किया है। महेंद्र को 30 साल से ज्यादा का समय अंतरिक्ष क्षेत्र में काम करते हो गया है। नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले के कैंडाटोला गांव के रहने वाले वैज्ञानिक महेंद्र ने पहले एक सरकारी स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद IIT दिल्ली में एडमिशन लिया और वहां से ISRO तक पहुंचे. वे पिछले 16 सालों से बतौर वैज्ञानिक ISRO में काम कर रहे हैं।
उमरिया जिले के युवा वैज्ञानिक प्रियांशु मिश्रा ने चंद्रयान 3 प्रक्षेपण के लिए विकसित एलवीएम3 रॉकेट पर शोध में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रियांश 2009 से ISRO में शोधकर्ता हैं। उन्होंने भोपाल में पढ़ाई की। इसके बाद देहरादून से इंजीनियरिंग और रांची से M.Tech कर ISRO तक का सफर तय किया।
चंद्रयान-3 मिशन में सतना क्षेत्र के युवा वैज्ञानिक ओम पांडे ने भी अहम भूमिका निभाई। वह चंद्रयान की अंतरिक्ष कक्षा और प्रक्षेप पथ को नियंत्रित करने वाली टीम का हिस्सा हैं। इसके अलावा वे चंद्रमा पर लैंडर की लैंडिंग में भी शामिल हैं। वह 2018 में इसरो में शामिल हुए।
रीवा के वैज्ञानिक तरूण सिंह ने 15 साल पहले इसरो से जुड़े थे। ISRO के वरिष्ठ विद्वानों में से एक तरूण सिंह ने सैनिक स्कूल से 12वीं कक्षा तक स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद मैंने SGSITS पर मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इंजीनियरिंग के बाद तरूण सिंह ISRO में शामिल हो गए।
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