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Holi 2024: महाकाल की नगरी में 5 हजार कंडो से बनी होलिका, इसके पीछे ये है प्रथा

• LAST UPDATED : March 22, 2024

India News MP (इंडिया न्यूज), Holi 2024: सिंहपुरी की होली 3000 साल पुरानी है, लेकिन इस होली से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पूर्णिमा के दिन शाम के समय विवाहित महिलाओं और विवाह योग्य लड़कियों द्वारा सौभाग्य की वस्तुओं से होलिका की पूजा की जाती है। गुड़ से बने पकवानों का भोग लगाया जाता है। मनोकामना पूरी करने के लिए गाय के गोबर से बने उपलों की माला चढ़ाई जाती है। प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में वैदिक अग्नि का आह्वान कर होलिका अग्नि को समर्पित किया जाता है। प्राचीन काल में इस प्रक्रिया में चकमक पत्थर का उपयोग किया जाता था। इस होलिका को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

परंपरा कई सालों पुरानी  

भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पहले ही यह सिद्ध कर दिया था कि गाय के गोबर का उपयोग विशेष रूप से पंचतत्वों की शुद्धि के लिए किया जाता है। यह परंपरा यहां तीन हजार साल से जारी है। सिंहपुरी में होली का उत्सव श्रुत परंपरा के साहित्य में तीन हजार वर्ष पुराना है। धार्मिक मान्यता के अनुसार राजा भर्तृहरि सिंहपुरी की होली में भाग लेने आते थे। यह कालखंड ढाई हजार वर्ष पुराना है।

होलिका ध्वज का विशेष महत्व

ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बा ने बताया कि ब्रह्म मुहूर्त में वैदिक पंडित मंत्रोच्चार के साथ होलिका को आमंत्रित करते हैं। परंपरा के आधार पर आतिथ्य सत्कार की घोषणा करते हैं। फिर उसे जला देते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन के समय होलिका ध्वज का विशेष महत्व बताया गया है। दहन के मध्य इसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी भी वायव्य (भूत-प्रेत, जादू-टोना) का दोष नहीं लगता, यही कारण है कि युवाओं में इसे प्राप्त करने की होड़ लगी रहती है।

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