आमतौर पर जब भी ममी का जिक्र होता है तो सबसे पहले जेहन में मिस्र का नाम आता है
पर एक ऐसा देश भी है, जहां चलन न होने के बावजूद एक ममी संरक्षित है और वो भी अत्याधुनिक तकनीक से
इसे संरक्षित करने पर वह देश हर साल भारी-भरकम रकम खर्च करता है, उस देश का नाम है रूस और जिनकी ममी रखी है
वह थे रूसी क्रांति के जनक व्लादिमीर लेनिन,21 जनवरी 1924 को सुबह 6:50 बजे लेनिन की मौत हुई थी, यानी बीते सौ साल से उनकी ममी संरक्षित है
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि परंपरा न होने के बावजूद दफनाने के बजाय लेनिन की ममी क्यों बनाई गई?
बात 1918 की है, तब लेनिन पर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें वह बाल-बाल बचे थे। हालांकि, तब वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे
इसके कारण उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गई , बाद में 21 जनवरी 1924 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया
मौत के दो दिन बाद उनका शव खास ट्रेन से गोर्की से मॉस्को लाया गया, वहां के रेड स्क्वायर पर लकड़ी का एक अस्थायी ढांचा बनाकर उस पर ताबूत लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रख दिया गया
रूस की भीषण सर्दी में भी लेनिन को श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया,लगातार दो महीने तक लोग पहले दिन की तरह ही उमड़ते रहे
ऐसे हालात को देखते हुए सोवियत संघ के तत्कालीन नेताओं ने निर्णय लिया कि लेनिन के पार्थिव शरीर को संरक्षित कर दिया जाए, जिससे लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें
इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स के वैज्ञानिकों ने मार्च 1924 में लेनिन के पार्थिव शरीर पर एक लेप लगाया
इसके बाद किसी ने भी दफनाने के बारे में नहीं सोचा और अब हर साल लेनिन के शरीर पर एक बार लेप लगाया जाता है, इसकी पूरी प्रक्रिया 15 से 30 दिनों तक चलती है