अचानक गायब हो गया ये भारतीय धर्म
हम इस धर्म के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो बौद्ध और जैन धर्म का समकालीन था।
आजीविकों के अनुसार, मनुष्य की आत्मा अवतार लेती है, यह अवतार भाग्य द्वारा निर्धारित होता है, मुक्ति केवल एक भ्रम है।
उनके अनुसार, जीवन एक धागे की गेंद की तरह है। यह नहीं पता कि एक परत के बाद धागा किस रंग का होगा। जीवन में भी यही होता है।
आजीविकों का मानना था कि सब कुछ पहले से तय है। इसे मूल रूप से भाग्यवाद कहा जाता है।
उनका मानना था कि जो करना है करो लेकिन वही होगा जो लिखा है। उन्होंने कर्म के सिद्धांत को सिरे से खारिज कर दिया।
आजीविकों के लुप्त होने का सबसे बड़ा कारण मौर्य काल में उन पर हुए हमले थे।
ऐसा माना जाता है कि अगर कुछ आजीविक बचे भी थे, तो मध्यकाल में उनका सफाया हो गया। इस तरह यह संप्रदाय विलुप्त हो गया