India News (इंडिया न्यूज़), Mythological stories of Dussehra: शारदीय नवरात्र के 9 दिन तक मां भवानी के व्रत करने के बाद 10वें दिन दशहरे पर भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही पूरे भारत में दशहरे के पर्व को हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। बता दें कि, विजयादशमी को हिंदू धर्म में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में ऐसा मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। तभी से लोग हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को दशहरे के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग रावण के पुतले का दहन करके दशहरे का त्योहार मनाते है। इस साल दशहरा 24 अक्टूबर मंगलवार को मनाया जाएगा। इस दिन देश के कोने कोने में रावण के पुतले को जलाते है। आइए आपको बताते हैं इस पर्व को मनाने के पीछे क्या हैं पौराणिक मान्यताएं।
भगवान श्रीराम को पिता के आदेश मिलने के बाद 14 वर्ष के वनवास के लिए जाना पड़ा। उस दौरान लंकापति रावण ने माता सीता का छल से अपहरण कर लिया। उसके बाद भगवान श्री राम ने हनुमान जी को माता सीता की खोज के लिए भेजा। जब हनुमान जी को माता सीता का पता लगाने में सफलता प्राप्त हुई और उन्होंने रावण को समझाया कि माता सीता को सम्मान के साथ प्रभु श्रीराम के पास वापस भेज दें। लेकिन अपने शक्ति के घमंड में रावण ने हनुमान जी की एक न मानी और अपनी मौत को निमंत्रण दे डाला। उसके बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जिस दिन रावण का वध किया उस दिन शारदीय नवरात्र की दशमी तिथि थी।
भगवान श्रीराम ने 9 दिन तक मां दुर्गा की उपासना की और फिर 10वें दिन रावण का वध कर विजय प्राप्त की, तब से इस त्योहार को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि, रावण के बुरे कर्मों पर श्रीरामजी की अच्छाइयों की जीत हुई, इसलिए इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के त्योहार के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन रावण के साथ-साथ उसके पुत्र मेघनाद और उसके भाई कुंभकरण के पुतले भी फूंके जाते हैं।
पौराणिक कथाओं में विजयादशमी को मनाने के पीछे एक और मान्यता यह भी बताई गई है कि, इस दिन मां भगवती ने चंडी रूप धारण करके महिषासुर नामक असुर का भी वध किया था। महिषासुर और उसकी सेना द्वारा देवताओं को परेशान किए जाने की वजह से, मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक महिषासुर और उसकी सेना से युद्ध किया था। जिसके बाद माता ने 10वें दिन उन्हें महिसाषुर का अंत करने में सफलता प्राप्त हुई। इसलिए भी शारदीय नवरात्र के बाद दशहरा मनाने की परंपरा है।
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