India News (इंडिया न्यूज), Same-Sex Marriage: आज सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध पर फैसला सुनाया। SC ने समलैंगिक विवाह पर मान्यता देने के लिए मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जो करेगी सरकार करेगी।
सभी को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार है। सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया। यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार तक जाता है। SC ने कहा जो करेगी सरकार करेगी। SC कानून बनाने पर साफ कहा कि यह हमारे अधिकार में नहीं है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस मामले में चार फैसले हैं। सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी, हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर ‘गरिमा गृह’ बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए।
इस न्यायालय को मामले की सुनवाई करने का अधिकार है। क्वीर एक प्राकृतिक घटना है जो भारत में सदियों से ज्ञात है। यह न तो शहरी है और न ही संभ्रांतवादी। विवाह स्थिर नहीं है।
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून यह नहीं मान सकता कि केवल विषमलैंगिक जोड़े ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं। यह भेदभाव होगा। इसलिए गोद लेने के नियम समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव के लिए संविधान का उल्लंघन हैं।
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि यह संसद को तय करना है कि इस विशेष विवाह अधिनियम के शासन में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं। साथ ही कहा, “शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत द्वारा निर्देश जारी करने के रास्ते में नहीं आ सकता। अदालत कानून नहीं बना सकती बल्कि केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है।”
जीवन साथी चुनना किसी के जीवन की दिशा चुनने का एक अभिन्न अंग है। कुछ लोग इसे अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय मान सकते हैं। यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ तक जाता है।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 10 दिन की सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले पर वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, राजू रामचंद्रन, केवी विश्वनाथन (वर्तमान सुप्रीम कोर्ट जज), आनंद ग्रोवर और सौरभ किरपाल ने बहस की, जिन्होंने 21 याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया। केंद्र सरकार ने याचिका का कड़ा विरोध किया था और कहा था कि याचिका को अनुमति देने से व्यक्तिगत अधिकारों को नुकसान होगा। संविधान पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।
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