ग्वालियर: ग्वालियर जिले के ग्राम संताऊ में शीतला माता का 400 साल पुराना मंदिर है जहां डकैत भी माँ की आराधना करते थे। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं। नवरात्रि के मौके पर भक्तगण मां दुर्गा की आराधना करते हैं और यही वजह है की देश के हर कोने में मां दुर्गा के मंदिर पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा सकती है। आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जो ग्वालियर शहर से 20 किलोमीटर दूर घने जंगलों में विराजमान है। मां की शक्ति के आगे बड़े बड़े डकैत भी थर-थर कांपते हैं। ग्वालियर शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ों के बीच घने जंगलों में मां शीतला विराजमान है।
कहा जाता है कि जब चंबल अंचल में डकैतों का बोलबाला हुआ करता था। और डकैत दिन में ही लोगों से लूटपाट करते थे। उस समय लोग शाम के वक्त घर से बाहर जाने में भी डरते थे। लेकिन मां शीतला माता की शक्ति के सामने यह डकैत नतमस्तक हो गए। यही वजह है कि उस समय भी यहां भक्तों का मेला लगता था। माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं से कभी लूटपाट नहीं होती थी। यहां काफी घना जंगल है। मां शीतला माता के मंदिर पर हर डकैत भोग लगाने के लिए आता था और पूजा अर्चना करता था।
400 साल पुराना है मां शीतला माता का इतिहास
कहा जाता है मां का एक अटूट भक्त गजाधर मंदिर के पास ही बसे गांव सातऊं में रहता था। वे गोहद जिले के पास स्थित खरवा में एक प्राचीन देवी मंदिर में नियमित रूप से गाय के दूध से माता का अभिषेक करता था। गजाधर की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी मां कन्या के रूप में प्रकट हुईं और उनके साथ चलने को कहा, गजानन ने माता से कहा कि उनके पास कोई साधन नहीं है। वह उन्हें अपने साथ कैसे ले जाएं, तब माता ने कहा कि वह जब उनका ध्यान करेगा तब माता उसके सामने प्रकट हो जाएंगी। गजाधर ने सातऊ पहुंचकर माता की अराधना की तो, देवी प्रकट हुईं और गजाधर से मंदिर बनवाने के लिए कहा।
पहाड़ों के बीच माता का मंदिर क्यों बनाया गया मंदिर ?
गजाधर ने माता से कहा कि वह जहां विराजमान हो जाएंगी, वहीं मंदिर बना दिया जाएगा। उसके बाद मां शीतला माता सातऊ गांव से बाहर निकलकर जंगलों में पहाड़ी पर विराजमान हो गईं, जहां मंदिर बनाया गया। तब से लेकर अब तक गजाधर के वंशज इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं। शीतला माता पिछले करीब 400 सालों से भक्तों की मुराद पूरी करती चली आ रही हैं। मंदिर के आसपास आज भी घना जंगल है, बहुत पहले यहां शेर भी माता के दर्शन के लिए मंदिर आते थे।
2 शहर से 20 किलोमीटर दूर है माता का मंदिर
चंबल के डकैत भी माता की पूजा करते थे जब चंबल अंचल में कुख्यात डकैतों का बोलबाला था। तब अंचल में सन्नाटा पसरा रहता था और पुलिस भी डकैतों से थर थर कांपती थी। उस समय यह डकैत मां के दर्शन किए बिना आगे नहीं बढ़ते थे। मंदिर में आज भी डकैतों के चढ़ाए गए घंटे मंदिर में मौजूद हैं। पुलिस अफसर भी यहां पर माता के दरवार में घंटा चढ़ाने के लिए आते थे। कई बार पुलिस ने मंदिर में रात बिताकर पास के जंगलों में डकैतों का एनकाउंटर भी किया था।
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