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कावेरी विवाद पर आज कर्नाटक बंद, जानें कितना पुराना है कावेरी जल विवाद?

• LAST UPDATED : September 29, 2023

India News(इंडिया न्यूज), Kaveri River Dispute: तमिलनाडु और कनार्टक के बीच कावेरी नदी को लेकर विवाद ख्तम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। ऐसे में तमिलनाडु में कावेरी का पानी छोड़े जाने के विरोध में आज यानी 29 सितंबर को कन्नड समर्थकों ने कनार्टक बंद का ऐलान कर दिया है। जिससे राज्य का दक्षिणी हिस्सा ज्यादा प्रभावित होने वाला है। वहीं इससे पहले बेंगलुरू 26 सितंबर को बंद किया गया था।

जानकारी मिली है की अलग-अलग किसान संगठनों के प्रमुखों ने इस बंद का आह्वान किया है। जिसमें कर्नाटक रक्षणा वेदिके, कन्नड़ चालुवली और ‘कन्नड़ ओक्कुटा’ शामिल हैं। बेंगलुरु पुलिस ने कावेरी जल मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहें कन्नड़ समर्थक संगठनों के सदस्यों को हिरासत में लिया।

अब क्यों हो रहा है कावेरी जल विवाद?

इस बार तमिलनाडु ने कर्नाटक से 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग की थी। लेकिन तमिलनाडु का दावा है कि कर्नाटक ने 10,000 क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा है। वहीं कर्नाटक का कहना है कि इस बार कमजोर दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण कावेरी नदी क्षेत्र के जलाशयों में पर्याप्त पानी नहीं है। ऐसे में कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इनकार कर दिया। इस वजह से ये मुद्दा और गरमा गया है।

जिसके बाद कावेरी जल बोर्ड ने 18 सितंबर को कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया। आदेश के मुताबिक, कर्नाटक को 28 सितंबर तक तमिलनाडु को पानी की आपूर्ति करानी थी। हालांकि, सूखा प्रभावित कर्नाटक ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिससे कर्नाटक सरकार को झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अब कर्नाटक के कई किसान और संगठन तमिलनाडु को पानी दिए जाने के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इसी कड़ी में मंगलवार को बंगलूरू बंद का आवाह्न कर दिया गया। जिसके साथ ही कन्नड समर्थकों ने 29 सितंबर को कनार्टक बंद का आह्वान किया है।

क्या है और कितना पुराना है कावेरी जल विवाद?

दरअसल कावेरी जल विवाद 140 साल से भी ज्यादा पुराना है। कावेर नदी कनार्टक के कोडागू जिले से निकलते हुए बांगाल की खाड़ी में पहुंचती है। इसके कुछ हिस्से केरल और पुडुचेरी में भी है।

  • आपको बता दें कि यह विवाद सबसे पहले 1881 में शुरू हुआ था। तब कर्नाटक को मैसूर के नाम से जाना जाता था। उस समय इस नदी पर बांध बनाने की मांग तेज हो गई। तमिलनाडु इसके ख़िलाफ़ था।
  • 40 वर्षों के संघर्ष के बाद, अंग्रेजों ने 1924 में दोनों राज्यों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर कराए, जिसमें तमिलनाडु को 556 टीएमसी (हजार घन फीट) और कर्नाटक को 177 टीएमसी जल का अधिकार दिया गया।
  • पुडुचेरी और केरल बाद में इस विवाद में शामिल हो गए और 1972 में एक आयोग का गठन किया गया, जिसके बाद 1976 में चारों राज्यों के बीच एक समझौता हुआ। हालांकि, विवाद जारी रहा और 1986 में तमिलनाडु राज्य ने अंतर-राज्य के तहत अदालत में एक आवेदन दायर किया।
  • जल विवाद अधिनियम. 1990 में गठित एक न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि सौदे के तहत तमिलनाडु को एक निश्चित हिस्सा मिलेगा, लेकिन कर्नाटक ने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ सौदा उचित नहीं था। हालाँकि, तमिलनाडु पुराने फैसले के समर्थन में है।

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