मध्य प्रदेश की लगभग साढ़े आठ करोड़ जनता के लिए विधायकों के पास जनता के लिए समय नहीं है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण एक दिन पहले यानि मंगलवार को स्थगित हुए विधानसभा सत्र को देखकर लगाया जा सकता है।
बता दें कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चौथे कार्यकाल का यह अंतिम विधानसभा बजट सत्र था। सत्र 27 फरवरी से 27 मार्च तक चलना था। सत्र की निर्धारित अवधि 29 दिन की थी। सत्र के दौरान मध्यप्रदेश के विकास हित में 13 बैठकें आयोजित होना थी। लेकिन 27 मार्च तक चलने वाला विधानसभा सत्र सात दिन पहले यानि 21 मार्च को स्थगित हो गया।
महज 44 घंटे 57 मिनट ही चर्चा हो पाई। सदन की शुरुआत 27 फरवरी से हुई थी। सत्र की निर्धारित अवधि 29 दिन रखी गई थी। इस दौरान 13 बैठकों का आयोजन होना था, लेकिन सदन में 12 बैठकें ही आयोजित हो सकीं। जबकि एक बैठक निरस्त कर दी गई।
27 फरवरी विधानसभा बजट सत्र में शुरुआत से ही हंगामा होने लगा था। जो बढ़ता ही चला गया। शुरुआत में विपक्ष की ओर से राऊ से कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी सत्ता पक्ष की परेशानी बनते नजर आए। जिनको निलंबन का मुहं भी देखने को मिला। जिसके बाद विधानसभा सत्र की कार्यवाही के दौरान विपक्ष ने महू में हुए आदिवासी युवक-युवती की मौत का मामला, ओलावृष्टि से बर्बाद किसानों की फसल और 10वीं-12वीं के पेपर लीक मामले पर विपक्ष ने जमकर हंगामा बोला।
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