MP: रामचरित मानस विवाद में महामंडलेश्वर स्वामी सुमनानंद महाराज ने दिया ब्यान, कहा-श्रीरामचरितमानस में नहीं किया गया किसी का अपमान

रामचरित मानस विवाद: श्रीरामचरितमानस को लेकर उठा विवाद रुकने का नाम नहीं ले रहा है। उठे विवाद में मौनतीर्थ पीठ उज्जैन के पीठाधीश्वर एवं निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी सुमनानंद महाराज  की भी एंट्री हो गयी है। स्वामी सुमनानंद महाराजने कहा है कि अगर वो श्रीरामचरितमानस को जलाएंगे तो हम जन-जन में इस पवित्र ग्रंथ के प्रति आस्था को और बढ़ाएंगे। श्रीरामचरितमानस में किसी का अपमान नहीं किया गया, बल्कि यह उत्कृष्ट जीवन जीने का मार्ग बताता है।

महामंडलेश्वर स्वामी सुमनानंद महाराज ने कहा कि जिस बात को लेकर यह उपद्रव उठा है, उसका मर्म समझने की आवश्यकता है। ताड़न का अर्थ किसी को प्रताड़ित करना नहीं अपितु उसके बारे मे पता लगाने से है। किसी के बारे में भांप लेना ही ताड़ लेना भी कहा जाता है।

श्रीरामचरितमानस मे किसी जाति विशेष के बारे में नहीं कही गई है कोई बात

सुमनानंद महाराज ने कहा विवाद की पहली जड़ चौपाई के शब्द का अर्थ गलत समझ लेना है। दूसरी बात यह कि इस शब्द को जाति विशेष से जोड़कर ले लिया गया है। श्रीरामचरितमानस मे किसी जाति विशेष के बारे में कोई बात नहीं कही गई है। इस वजह से श्रीरामकथा के आयोजन में कभी किसी वर्ग के श्रोता ने आपत्ति नहीं उठाई। आम व्यक्ति में इतनी समझ है तो राजनीति करने वालों को यह बात आसानी से समझ लेना चाहिए था। हां, इसके माध्यम से वोट की राजनीति करने का उद्देश्य सभी को साफ दिखाई दे रहा है। इस वजह से अगर वो श्रीरामचरितमानस जलाएंगे तो हम जन-जन में इसके प्रति और अधिक आस्था जगाएंगे। 

शब्द से आपत्ति है तो आरक्षण का लाभ लेना भी छोड़ देना चाहिए

धार्मिक नगरी उज्जैन में 26 फरवरी को वृहद स्तर पर तुलसी मानस स्वाध्याय का संकल्प दिलवाया जाएगा। इसमें प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन श्रीरामचरितमानस की कम से कम एक चौपाई का पाठ नियमित करेगा। साथ ही मानस की प्रतियों का नि:शुल्क वितरण किया जाएगा। महामंडलेश्वर स्वामी सुमनानंद गिरी ने कहा किसी शब्द से आपत्ति है तो उसे लिखकर आरक्षण का लाभ लेना भी राजनीतिज्ञों को छोड़ देना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति जरूरत पड़ने पर अपनी जाति लिखता ही है। जाति प्रमाणपत्र भी स्वीकार किया जाता है। राजनेता तो इसका अत्यधिक लाभ लेते हैं। इसी आधार पर उन्हें टिकट मिलते हैं। वे इस कारण ही राजनीतिक पद पर बैठ पाते हैं। अत: विरोध करने वाले नेताओं को पहले ये पद छोड़ना चहिए। यह साहस क्यों नहीं दिखाया जाता। यह प्रश्न भी इस विवाद के बीच विचारणीय है

Divyanshi Singh

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