Kanwar Yatra 2022: जानिए सावन के महीने में क्यों की जाती है कांवड़ यात्रा

इंडिया न्यूज़, Kanwar Yatra 2022: सावन के महीने में शिव भक्त कावड़ यात्रा कर भोले नाथ की कृपा पाते हैं सावन के महीने में कावंड यात्रा का विशेष महत्व होता है। कावड़ यात्रा में भक्त एक स्थान से पवित्र जल लेकर पैदल चलते हुए मीलों की दूरी तय करके शिवलिंग का अभिषेक कर सकते हैं। इस दौरान कावड़ यात्री अनेक कठिन नियमों का पालन करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कावड़ यात्रा की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई।

कावड़ यात्रा की परंपरा का उल्लेख तो किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता लेकिन भगवान परशुराम से जुड़ी एक कथा जरूर है। जिससे कावड़ यात्रा का महत्व पता चलता है। सावन के इस पवित्र महीने में आइए जानते हैं कावड़ यात्रा से जुड़ी इस रोचक कथा के बारे में।

कावड़ यात्रा की कथा

भगवान विष्णु के अवतार परशुराम अवतार एक बार मयराष्ट्र से होकर निकले तो उन्होंने पुरा नाम के स्थान पर विश्राम किया। वह स्थान परशुराम जी को बहुत सुंदर लगा।

परशुराम जी ने उसी स्थान पर एक भव्य शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। मंदिर में शिवलिंग की स्थापना के लिए पत्थर लेने वे हरिद्वार के गंगा तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने मां गंगा से एक पत्थर प्रदान करने का अनुरोध किया।

परशुराम जी की बात सुनकर सभी पत्थर रोने लगे क्योंकि वे देवी गंगा से अलग नहीं होना चाहते थे। तब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर वे ले जाएंगे उसका चिरकाल तक गंगाजल से अभिषेक किया जाएगा।

भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया। इसके बाद से ही कावड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई। आज भी भक्त कावड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार से गंगाजल लाकर मेरठ स्थित परशुरामेश्वर मंदिर में जल चढ़ाते हैं

ये है कावड़ यात्रा के नियम

  • बिना स्नान किए भी कावड़ यात्री को नहीं छूते हैं। अगर किसी कारणवश कावड़ कंधे से उतारनी पड़े तो बिना शुद्ध हुए दोबारा कावड़ को हाथ न लगाएं।
  • कावड़ यात्रा के दौरान तेल, साबुन, कंघी करने या अन्य कोई श्रृंगार सामग्री का उपयोग करने की भी मनाही होती है।
  • कावड़ यात्री चारपाई पर नहीं बैठ सकते और ना ही किसी वाहन पर बैठ सकते हैं।
  • यात्रा के दौरान चमड़े से बनी चीजों जैसे बेल्ट, पर्स आदि को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए।

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Mamta Rani

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