India News (इंडिया न्यूज), Karva Chauth History: करवा चौथ का त्योहार कार्तिक महीने की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन हर पत्नी अपने पति की लंबी आयु के लिए ये निर्जला उपवास रखती है। सारा दिन भूखे-प्यासे रहकर पत्नियां रात को चांद निकलने के बाद उसकी पूजा करती है। जिसके बाद वह अर्घ्य अर्पित करती है। यह करने के बाद वह अन्न का पहला निवाला तथा जल की पहली बूंद अपने पति के हाथों ग्रहण कर अपना व्रत खोलती है। इस लेख में आपको करवा चौथ के इतिहास के बारे में पढ़ने को मिलेगा।
करवा का अर्थ मिट्टी का बर्तन होता तथा चौथ कता अर्थ चतुर्थी है। इसका पूरा अर्थ कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन मिट्टी के बर्तन द्वारा अर्घ्य देकर पूजा करना होता है।
माना जाता है कि एक बार युद्ध चल रहा था। तब श्री ब्रह्मा जी द्वारा सभी देवियों को उनके पतियों की रक्षा के लिए करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी गई। जिसके बाद सभी देवियों द्वारा भूखा प्यासा रह कर निर्जला व्रत किया गया। जिससे इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा। देवियों द्वारा रात को चांद देख कर पूजा की गई, जिसके बाद उन्होंने अन्न और जल ग्रहण किया। इसी कारण करवा चौथ को इलता महत्तवपूर्ण माना जाता है।
रामायण से भी करवा चैथ के पावन व्करत को जोड़ कर देखा जा सकता है। कहा जाता है कि माता द्रवारा लंका में रहते समय सबसे लंबा व्वारत रखा गया। अशोक वाटिका में रहते हुए उन्होंने अन्न जल का त्याग किया था। जिसके बाद देवताओं द्वारा प्रकट हो उन्हें यह आश्वासन दिया गया और खीर खिलाई गई। दूसरी मान्यता यह है कि पहली बार करवा चौथ सीता जी द्वारा पहली बार रखा गया था।
Read more: MP Election 2023: BJP ने नहीं दिया ‘भाव’ तो हिमाचल चल…