कौन होते थे साहब? जिनके लिए आपस में भीड़ जाती थीं तवायफें
तवायफों पर आधारित संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडी इन दिनों काफी सुर्खियों में बनी हुई है
बता दें, हीरामंडी में तवायफों की जिंदगी,संघर्षों और स्वतंत्रता आंदोलनों में उनकी भूमिका को दिखाया गया है
फिल्म में दिखाया कि हर तवायफ का एक साहब होता था,आइए जानते हैं साहब से उनका क्या संबंध होता था, वो किसको अपना साहब मानती थीं
दरअसल, साहब का अर्थ होता था वो नवाब या कद्रदान जो जब जी चाहे अपनी चुनी हुई एक तवायफ से हमबिस्तर हो सकता था
तवायफ का खर्चा उठाने की जिम्मेदारी भी उस साहब की ही होती थी
तवायफों में ये होड़ लगी रहती थी कि वे किसी अमीर कद्रदान को अपना साहब बनाएं ताकि वो महंगे-महंगे तोहफे उन्हें लाकर दे सके
ये साहब बोली लगाकर अपनी मनपसंद तवायफ को चुन सकते थे
बता दें, तवायफों की जिंदगी काफी संघर्ष भरी होती थी, इसमें प्यार नाम की कोई चीज़ नहीं होती थी, साहब का जब मन एक तवायफ से भर जाता था तो वो अपने लिए दूसरी चुन लेते थे