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MP: बच्चों को अफसर और लाड़ली के हाथ पीले करना का था सपना, एक हादसे ने बदल दी पूरी तस्वीर

• LAST UPDATED : April 3, 2024

India News MP (इंडिया न्यूज), MP: ग्वालियर से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। छोटी सी उम्र में बच्चों के सिर से मां-बाप का साया चला गया। एक हादसे में परिवार के 2 लोगों की मौत हो गई। मासूम बच्चे जिंदगी और मौत से जूझ रहे। जिस पिता ने अपने बच्चों को अफसर बनाने के लिए टिक्की बेचना शुरू किया था, वह एक-एक पैसा जोड़कर उनकी जिंदगी बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे थे।

यहां मां अपने बच्चों की शादी के सपने संजो रही थी, लेकिन वक्त के क्रूर हाथों ने उसकी सारी खुशियां छीन लीं।

आग में झूलसा परिवार 

अब उन बच्चों के सारे सपने दुखों के पहाड़ तले धूल में मिल गये हैं। जहां उसके सिर से माता-पिता का साया छिन गया। तीन बच्चे जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। तीन को अब भी नहीं पता कि उनके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। साथ ही भाई-बहन अस्पताल में दर्द से रो रहे हैं। शहर के सिंधिया नगर निवासी अवधेश प्रजापति, पत्नी राम, बेटियां रेशमा, कुसमा और बेटा राजा 30 मार्च को आग में झुलस गए थे। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया। इलाज के दौरान अवधेश और पत्नी रामबेटी की मौत हो गई।

मौत से जूझ रहे बच्चे 

बेटियां रेशमा, कुसमा और बेटा राजा बर्न यूनिट में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, उनकी हालत नाजुक बनी हुई है। बर्न यूनिट में भर्ती इन बच्चों को अभी तक नहीं पता कि उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया है। बर्न यूनिट के बिस्तर पर लेटी बेटी रेशमा को जब भी जलन महसूस होती है तो वह अपनी मां को चिल्लाने लगती है। परिवार बच्चों की देखभाल में लगा हुआ है, लेकिन अब उनके पास उनका दर्द समझने वाले माता-पिता नहीं हैं।

परिवार गरीब होकर भी खुशहाल था

सिंधिया नगर में रहने वाला अवधेश टिक्की बनाकर बेचने का काम करता था। परिवार में तीन बेटे और तीन बेटियां हैं। लेकिन आज अनाथ हो गए। उनके माता-पिता ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाने का सपना संजोया था। इस हादसे में जान गंवाने वाले अवधेश के पड़ोसियों का कहना है कि यह परिवार गरीब जरूर था, लेकिन खुशहाल था। इस हादसे से बच्चों को जीवन खतरे में पड़ गया है।

हादसे में 2 की मौत

हादसे से पांच दिन पहले तीन मासूम बच्चे अपने दादा के साथ गांव गए थे। इसलिए वह हादसे का शिकार होने से बच गए। बच्चे अपने दादा-दादी के साथ गांव में रहकर प्राइमरी क्लास में पढ़ते थे। इससे पहले कि बच्चे घर लौटते और उनके माता-पिता उन्हें छोड़कर चले गए।

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